शीला की जवानी
माय नेम इस शीला ,शीला की जवानी
इंसान नहीं तो क्या, हूँ तो कुतियों की रानी
बैठे बिठाये प्यार हो गया।
कल तक अजनबी था,वोह आज यार हो गया।
एक अल्सेशियन पर, दिल वारम वार हो गया।
गली नुक्कड़ में यही हॉट समाचार हो गया।
कल तक काबू में था दिल, आज बेक़रार हो गया।
जानवार काम का जो था,आज बेकार हो गया।
माँ ने कहा, बेटे, उखड़े उखड़े से क्यों लगते हों,
भरे सावान में सूखे खेत से नज़र आते हो।
शायद तुम्हे कोई भा गया,कौन हैं जो दिल पे छा गया।
बेटा खानदान की इज्ज़त को निभाना ,
किसी कम जात के चक्कर में न आना।
पिता बोले हमें जात बिरादरी में नहीं है विश्वास,
सच्चा प्यार किसी मर्यादा का नहीं हैं मोहताज।
पर हाँ, कुंडली मंगवाएंगे, पंडित कुकर शर्मा को दिखवाएंगे
मिल गयीं गर कुंडली, तो अति शीघ्र शहनाईया बजवायेंगे।
श्रोतागन इस अधूरी कविता को परीपूर्ण करे
वर के घर का वातावरण बयाँ करे।
गद्य अथवा पद्य के रूप में अपनी प्रतिक्रिया/समालोचना भेज सकते हैं।
आपका ,
श्याम
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