Saturday, April 26, 2014

ठंडा गन्ने का जूस 04-26


अशोक चक्रधर भैया ने क्रोध अहंकार और गन्ने के जूस को आधारित कर एक कविता लिखी हमने भी उसका जवाब अपने दिवानिया स्टाइल में दिया। जो नीचे प्रस्तुत हैं।

ठंडा गन्ने का जूस


श्याम का जवाब ,

मन्ने भी दे दो  भैया,
झटपट गन्ने का जूस।

पीलिया को भी पिलिओ भैया ,

ये ठंडा गन्ने का जूस।

उदा दे ये भैया अहंकार ,

और क्रोध का भी फ्यूज।

मन्ने भी दे दो भैया  ,

झटपट गन्ने का जूस।

अशोक चक्रधर जी की कविता
अहंकार में आकर बढ़ता है,
क्रोध सबसे जल्दी सीढ़ी चढ़ता है।
चढ़ता ही जाए
बढ़ता ही जाए
तो लाल से हो जाता है
ज़हरीला नीला,
नीचे उतरे तो लाल से पीला।
उस पीली आग को नहीं चाहिए
ज़रा सी भी फूस,
पीलिया को चाहिए
गन्ने का जूस!

     

Wednesday, April 23, 2014

मंज़िले और भी है 04-23



मंज़िले और भी है सितारों से आगे।
क्षितिज के पार , हैं तेरी मंज़िलों की राहें।

बादलों का सारथ्य ले, कूच कर अंतरिक्ष ब्रम्हांड पर।
बसेरा कर, कैलाश पर्वत की चट्टानों पर।
निशाना साध वैकुण्ठ के सिंहद्वारों पर।
श्रुष्टि की प्रति श्रुष्टि कर, अपने सदृढ़ संकल्प से।

बुलंद इरादों के बूते, एक नया ज़माना पैदा कर।
नयी सुबह शाम पैदा कर।

 इस ज़ालिम ज़माने में, अपना मक़ाम पैदा कर।
अपना मक़ाम पैदा कर।

मंज़िले और भी है सितारों से आगे।......

एक अनोखा नजरिया 04-23


एक अनोखा नजरिया......  ,

ना तख़्त रहे हैं ना रहें हैं ताज,
न रहीं  विक्टोरिया,ना ही मुमताज़।
जिस के साम्राज्य में सूरज कभी न ढलता था
प्रकाश की भीख,वे ही मांग रहे हैं, मानो चन्द्रमा से आज।




kaviraj

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Kavita ka Kachumar